मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

प्रेम की इबारत !

दिल से पढ़ी है -
प्रेम की इबारत 
ज़हनियत की कोई 
जगह नहीं है यहाँ !

तुम्हारे टूटे बिखरे -
शब्दों को जोड़ ,
'मानी ' पा लिया है 

लिखते हुए ख़त 
तुम्हारे हाथों की 
कांपती उँगलियों 
का स्पर्श पाकर 
प्रेम का वह पन्ना 
कितना धन्य हुआ होगा ! 

पुलकित हुए होंगे
शब्द -जब ,
अक्षरों के समूह ने 
उन्हें छुआ होगा !  

बिस्तर पर 
करवट बदलते 
दांतों में दबी -
कलम ,
और 
पेशानी के कृत्रिम बल 
इन्हें देख -
दरों-दीवार ने भी 
प्रेम का रस चखा होगा !