मंज़र ज़मीनी हो या आसमानी, है तो दोनों ही खुदाई, और सबसे बड़ी बट, मंज़र देखने के लिए आँखे चाहियें, मन कि आँखें, जो ना केवल बहरी जिस्म कि नुमाइश को चास्म्दिद करती हैं , बल्कि रूहानी अनुभूति का एहसास दिला जाती हैं.
ये ख्याल ही तब आता है दिल को,जब खुदा से रूहे रु-ब-रु होता है .