एक मौसम सी मुहब्बत का
बस इतना सा फ़साना है !
कागज़ की हवेली है ,
बारिश का ज़माना है !
क्या शर्त-ए- मोहब्बत है ,
क्या शर्त-ए-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है,
और वो गीत भी गाना है !
उस पार उतरने की
उम्मीद बहुत कम है .
कश्ती भी पुरानी है,
तूफ़ान को भी आना है
समझें या न समझें वो ,
अंदाज़ मोहब्बत के .
एक ख़ास शख्स को
आँखों से शेर सुनाना है
भोली सी अदा कोई
फिर इश्क की ज़िद पर है
फिर आग का दरिया है
और डूब के जाना है !