शनिवार, 17 सितंबर 2011

फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है !

एक मौसम सी मुहब्बत का 
बस इतना सा फ़साना है !
कागज़ की हवेली है ,
बारिश का ज़माना है !
क्या शर्त-ए- मोहब्बत है  ,
क्या शर्त-ए-ज़माना है 
आवाज़ भी ज़ख़्मी है,
और वो गीत भी गाना है !
उस पार उतरने की
उम्मीद बहुत कम है .
कश्ती  भी पुरानी  है,
तूफ़ान  को  भी आना  है 
समझें या न समझें वो ,
अंदाज़ मोहब्बत के .
एक ख़ास शख्स को 
आँखों से शेर सुनाना  है 
भोली सी अदा कोई 
फिर इश्क की ज़िद पर है 
फिर आग का दरिया है
और डूब के जाना है !      
 

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

अभी थोड़ी रात बाकी है 
चरागों को अभी से  न बुझाओ 
बज़्मे -उल्फत में बिखरने दो  गेसुओं को 
रुखसार की लाली को  और बढाओ !

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

प्रेम की इबारत !

दिल से पढ़ी है -
प्रेम की इबारत 
ज़हनियत की कोई 
जगह नहीं है यहाँ !

तुम्हारे टूटे बिखरे -
शब्दों को जोड़ ,
'मानी ' पा लिया है 

लिखते हुए ख़त 
तुम्हारे हाथों की 
कांपती उँगलियों 
का स्पर्श पाकर 
प्रेम का वह पन्ना 
कितना धन्य हुआ होगा ! 

पुलकित हुए होंगे
शब्द -जब ,
अक्षरों के समूह ने 
उन्हें छुआ होगा !  

बिस्तर पर 
करवट बदलते 
दांतों में दबी -
कलम ,
और 
पेशानी के कृत्रिम बल 
इन्हें देख -
दरों-दीवार ने भी 
प्रेम का रस चखा होगा !
 

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

दिल से  आवाज़ ये आई है 
शब्दों से नवाजो तो बस रुबाई है .
तुम खुद को बुलंदी का अक्स दे दो 
समझो इसे , खुदा की खुदाई है ! 
मेरे हमदम, मेरे एहसास को 
परवान तो चढ़ जाने दो 
रुहे-इबादत को
अंजाम तक पहुँचाने  दो
नज़्म तो खुद-ब-खुद 
ऊंचाई छू लेगा 
बस ,अपने होठों से इसे ,
गुनगुनाने दो !