एक मौसम सी मुहब्बत का
बस इतना सा फ़साना है !
कागज़ की हवेली है ,
बारिश का ज़माना है !
क्या शर्त-ए- मोहब्बत है ,
क्या शर्त-ए-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है,
और वो गीत भी गाना है !
उस पार उतरने की
उम्मीद बहुत कम है .
कश्ती भी पुरानी है,
तूफ़ान को भी आना है
समझें या न समझें वो ,
अंदाज़ मोहब्बत के .
एक ख़ास शख्स को
आँखों से शेर सुनाना है
भोली सी अदा कोई
फिर इश्क की ज़िद पर है
फिर आग का दरिया है
और डूब के जाना है !
ROOP JI
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें /
मेरी १०० वीं पोस्ट पर भी पधारने का
---------------------- कष्ट करें और मेरी अब तक की काव्य-यात्रा पर अपनी बेबाक टिप्पणी दें, मैं आभारी हूँगा /
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंभावनाओं को बखूबी लिखा है ..मन की कश्मकश को प्रश्न के माध्यम से उकेरा है .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंwah ,kya jazbaat hai.anand aa gaya sathee
जवाब देंहटाएंरूपजी,..कशमकश के बीच बहुत सुंदर जज्बाती रचना,बढ़िया पोस्ट,..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे