दिल से पढ़ी है -
प्रेम की इबारत
ज़हनियत की कोई
जगह नहीं है यहाँ !
तुम्हारे टूटे बिखरे -
शब्दों को जोड़ ,
'मानी ' पा लिया है
लिखते हुए ख़त
तुम्हारे हाथों की
कांपती उँगलियों
का स्पर्श पाकर
प्रेम का वह पन्ना
कितना धन्य हुआ होगा !
पुलकित हुए होंगे
शब्द -जब ,
अक्षरों के समूह ने
उन्हें छुआ होगा !
बिस्तर पर
करवट बदलते
दांतों में दबी -
कलम ,
और
पेशानी के कृत्रिम बल
इन्हें देख -
दरों-दीवार ने भी
प्रेम का रस चखा होगा !