शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

किसी उदास शाम में ढल जाऊंगा .

तेरे शहर तेरी सोच से निकल जाऊंगा 

किसी उदास शाम में ढल जाऊंगा .

तू जो मुकर गई है हर बात से अपनी ,

देख लेना एक दिन मैं भी बदल जाऊंगा .

मत दिखा मुझ को अपना पशेमान चेहरा ,

जब कि तू जानता है मैं पिघल जाऊंगा .

चाहे लाख तडपू तेरे इंतज़ार में,

मत लौट के आना में संभल जाऊंगा .

तेरा होना इतना ज़रूरी तो नहीं है ,
मैं  तो यादों के खिलोने से बहल जाऊंगा !

2 टिप्‍पणियां:

  1. mai to yado ke khilone se bahal jaunga ...wahhhh
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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  2. बहुत ही सुंदर ऐसा लगता है जैसे ये कविता मेरे जज़्बातों को बयां कर रही है।।
    बहुत खूब

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